प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा अपडेट, इजराइल-हमास संघर्ष, खाड़ी सहयोग परिषद की बैठक और सेना के जल-थल अभियानों के लिए जारी किये गये संयुक्त सिद्धांत से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत बातचीत-
प्रश्न-1. यूक्रेन ने रूस में अब तक का सबसे बड़ा ड्रोन हमला किया है। यह युद्ध अब किस दिशा में बढ़ रहा है? इस बीच, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सऊदी अरब की राजधानी रियाद में अपने रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव से मुलाकात की। यह मुलाकात ऐसे समय में हुई है जब कुछ दिन पहले रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन संघर्ष के संबंध में भारत का नाम उन तीन देशों में शामिल किया था जिनसे वह लगातार संपर्क में हैं। साथ ही एनएसए अजित डोवाल भी ब्रिक्स बैठक में हिस्सा लेने के लिए रूस गये हैं। इसे कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- इसमें कोई दो राय नहीं कि यूक्रेन बीच-बीच में दूसरों से मिली शक्ति का प्रदर्शन रूस में कर रहा है लेकिन इससे उसे कुछ भी हासिल नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन ना तो अब तक रूस के किसी क्षेत्र पर पूरी तरह कब्जा कर पाया है ना ही रूस के कब्जे से अपने किसी क्षेत्र को अब तक छुड़ा पाया है। उन्होंने कहा कि जेलेंस्की के हर हमले का जिस तरह पुतिन बड़े संयम के साथ तीखा जवाब देते हैं उससे यूक्रेन तबाह होता जा रहा है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यूक्रेन ने मॉस्को में अपना अब तक का सबसे बड़ा ड्रोन हमला किया था जिसमें एक महिला की मौत हो गई, दर्जनों घर बर्बाद हो गए और मॉस्को के आसपास के हवाई अड्डों से लगभग 50 उड़ानों को डायवर्ट करना पड़ा। उन्होंने कहा कि दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु शक्ति रूस ने इस संबंध में कहा है कि उसने 20 यूक्रेनी हमलावर ड्रोनों को नष्ट कर दिया। उन्होंने कहा कि मॉस्को के चार हवाई अड्डों में से तीन छह घंटे से अधिक समय तक बंद रहे और लगभग 50 उड़ानें डायवर्ट की गईं। उन्होंने कहा कि निवासियों ने बताया है कि रूस पर ड्रोन हमलों से मॉस्को क्षेत्र के रामेंस्कॉय जिले में ऊंची अपार्टमेंट इमारतों को नुकसान पहुंचा, जिससे फ्लैटों में आग लग गई। उन्होंने कहा कि रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि ब्रांस्क क्षेत्र में 70 से अधिक ड्रोन और अन्य क्षेत्रों में दसियों से अधिक ड्रोन मार गिराए गए। उन्होंने कहा कि इस हमले का भी रूस की ओर से तीखा पलटवार जल्द ही किया जायेगा।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की मॉस्को यात्रा की बात है तो यह दरअसल ब्रिक्स देशों के एनएसए की बैठक है। हालांकि इस यात्रा के अन्य उद्देश्य भी हैं। उन्होंने कहा कि एनएसए अजीत डोभाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई संदेश रूसी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तक पहुंचाएंगे। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि रूसी नेतृत्व को यूक्रेनी राष्ट्रपति का कोई संदेश भी पहुँचाया जाये। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं वोलोदमीर ज़ेलेंस्की और व्लादिमीर पुतिन के साथ बैठक में कहा है कि भारत इस संघर्ष को समाप्त करने के लिए सक्रिय तरीके से योगदान करने में प्रसन्न होगा। उन्होंने कहा कि अब हम जो देख रहे हैं वह समाधान खोजने की दिशा में भारत के बढ़ते कदम हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि भारत अपने मिशन को कामयाब बनाने के बेहद करीब है। उन्होंने कहा कि ब्रिक्स और ब्रिक्स प्लस उच्च स्तरीय सुरक्षा अधिकारियों की बैठक 10-12 सितंबर को सेंट पीटर्सबर्ग में होने वाली है। उन्होंने कहा कि रूस वर्ष 2024 के लिए ब्रिक्स की अध्यक्षता संभाल रहा है। उन्होंने कहा कि ब्रिक्स में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। उन्होंने कहा कि नए सदस्य मिस्र, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और इथियोपिया भी इस समूह में शामिल हो रहे हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दूसरी ओर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस सप्ताह सोमवार को सऊदी अरब की राजधानी रियाद में अपने रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि दोनों मंत्रियों के बीच बातचीत भारत-खाड़ी सहयोग परिषद के विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान हुई। उन्होंने कहा कि दोनों मंत्री खाड़ी सहयोग परिषद की मंत्रिस्तरीय बैठकों में भाग लेने के लिए सऊदी अरब की राजधानी में थे। उन्होंने कहा कि पिछले सप्ताह पुतिन ने भारत का नाम उन तीन देशों में लिया था, जिनके साथ वह यूक्रेन संघर्ष को लेकर लगातार संपर्क में हैं और कहा था कि वे इसे सुलझाने के लिए ईमानदारी से प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पुतिन की यह टिप्पणी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यूक्रेन की ऐतिहासिक यात्रा के दो सप्ताह के भीतर आई थी जहां उन्होंने राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के साथ बातचीत की थी।
प्रश्न-2. इजराइल-हमास संघर्ष भी तेज होता जा रहा है। 11 महीने से चल रहे संघर्ष का आप क्या भविष्य देख रहे हैं?
उत्तर- इजराइल में विरोध प्रदर्शन बढ़ रहे हैं साथ ही बेंजामिन नेतन्याहू सत्ता पर अपनी पकड़ और मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं और अब यह नुकसान की परवाह किए बिना अपने राजनीतिक भविष्य को बचाये रखने का प्रयास लगने लगा है। उन्होंने कहा कि युद्ध से थके और क्रोधित हजारों इजराइली सप्ताह दर सप्ताह सड़कों पर उतर रहे हैं और प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से समझौता करने तथा सात अक्टूबर को हमास के हमले के बाद बंधक बनाए गए बंधकों (बचे हुए) को वापस लाने की मांग कर रहे हैं। पर उनकी मांगों पर कोई जवाब नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि इन विशाल सार्वजनिक प्रदर्शनों में 18 महीनों में सबसे बड़ी राष्ट्रव्यापी हड़ताल भी शामिल है। उन्होंने कहा कि हमास के साथ किसी भी समझौते के लिए नयी शर्तें तथा युद्ध को दूसरे वर्ष में भी जारी रखने की प्रतिबद्धताएं सामने आई हैं। उन्होंने कहा कि 750,000 से अधिक प्रदर्शनकारियों द्वारा इस्तीफे और युद्ध की समाप्ति की मांग के बावजूद भविष्य के लिए नेतन्याहू की एकमात्र योजना सत्ता पर काबिज रहना और हमास के खिलाफ लड़ाई जारी रखना ही प्रतीत होती है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि सितंबर की शुरुआत में गाजा में छह और इजरायली बंधकों के मृत पाए जाने के बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हुए। उन्होंने कहा कि प्रदर्शनकारियों की मुख्य मांग यह है कि नेतन्याहू, हमास के साथ युद्ध विराम पर हस्ताक्षर करें जिससे सात अक्टूबर 2023 के हमलों के बाद से बंदी बनाए गए शेष इजराइली नागरिकों की रिहाई हो सके। उन्होंने कहा कि बढ़ते सार्वजनिक असंतोष के बावजूद नेतन्याहू ने किसी भी युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया है तथा किसी भी संभावित समझौते में नई शर्तें जोड़ना जारी रखा है। उन्होंने कहा कि नवीनतम विवाद इजरायल की इस जिद पर है कि वह फिलाडेल्फी कॉरिडोर में अपनी स्थायी सैन्य उपस्थिति बनाए रखे। उन्होंने कहा कि फिलाडेल्फी कॉरिडोर गाजा पट्टी और मिस्र के बीच की सीमा पर स्थित भूमि की एक पट्टी है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हमास ऐसी किसी भी शर्त को मानने से इंकार करता है तथा मांग करता है कि सभी इजराइली सैनिकों को गाजा पट्टी खाली कर देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मिस्र ने भी अपनी सीमा पर इजराइली सैनिकों की तैनाती की संभावना पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि नेतन्याहू पर जनता के दबाव के अलावा उनके सत्तारूढ़ गठबंधन के अंदर और बाहर से भी राजनीतिक दबाव बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि नेतन्याहू के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी उन पर इजराइली जनता से झूठ बोलने और बंधकों को वापस लाने के किसी भी समझौते से पहले अपने राजनीतिक अस्तित्व को प्राथमिकता देने का आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनके गठबंधन के अंदर हमास का नामोनिशान मिटाने तक युद्ध जारी रखने का दबाव अधिक है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि नेतन्याहू की मौजूदा दुविधा की जड़ में 2016 में लगे भ्रष्टाचार के कई आरोप हैं। इसके बाद पुलिस जांच में नेतन्याहू पर 2019 में विश्वासघात, रिश्वत लेने और धोखाधड़ी के आरोप लगाए गए। उन्होंने कहा कि आरोप सार्वजनिक होने के बाद से नेतन्याहू ने अदालत के सामने आने, दोषी ठहराए जाने और जेल की सजा से बचने के लिए विभिन्न राजनीतिक चालें चलीं। उन्होंने कहा कि शुरुआत में इसमें न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डालने के लिए संसदीय प्रक्रियाओं का उपयोग करना शामिल था। उन्होंने कहा कि जब ये प्रयास विफल हो गए तो मई 2020 में नेतन्याहू पर मुकदमा शुरू हुआ। इसके बाद मार्च 2021 में नेतन्याहू चुनाव हार गए, जिससे उन्हें कोई संस्थागत संरक्षण नहीं मिला।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इजराइल में सिर्फ एक संसदीय सदन है इसलिए उच्चतम न्यायालय, नेसेट की शक्ति पर नियंत्रण और संतुलन का काम करता है। सरकार की मंशा यह सुनिश्चित करना है कि जजों की नियुक्ति करने वाली समिति में हमेशा उसका बहुमत बना रहे। यह बात कई इजराइलियों के लिए विशेष चिंता का विषय थी। उन्होंने कहा कि विरोधियों को डर था कि इन सुधारों से नेतन्याहू को उच्चतम न्यायालय में उनसे सहानुभूति रखने वाले न्यायाधीशों को नियुक्त करने की शक्ति मिल जाएगी और संभवतः इससे अभियोजन से छूट मिल जाएगी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रवादियों के लिए, प्रस्तावित सुधार इजराइली बस्तियों के विस्तार और पश्चिमी तट में फलस्तीनी भूमि के विनियोग (किसी चीज को बिना अनुमति के लेने की क्रिया) पर उच्चतम न्यायालय द्वारा लगाए गए कई संस्थागत नियंत्रणों और संतुलनों को हटा देंगे, कुछ ऐसा जो इजराइली राष्ट्रवादी वर्षों से चाहते थे। उन्होंने कहा कि यदि यह सफल रहा तो इसका अर्थ यह होगा कि पश्चिमी तट और पूर्वी यरुशलम पर इजराइल का 57 वर्षों से चला आ रहा कब्जा स्थायी हो जाएगा। यह भविष्य में किसी भी फलस्तीनी राज्य के लिए खतरे की घंटी होगी और यह बात हमास की नजरों से छिपी नहीं रहेगी। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित सुधारों के कारण जनवरी से अक्टूबर 2023 तक इजराइल में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। 7 अक्टूबर को जब हमास ने हमला किया, तब जाकर नेतन्याहू की सरकार को कुछ राहत मिली।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि लेकिन सात अक्टूबर को हमास के हमलों ने नेतन्याहू के लिए एक अतिरिक्त समस्या खड़ी कर दी, क्योंकि सुरक्षा को लेकर यह एक बड़ी चूक थी। इसमें बड़ी संख्या में यहूदियों की जान चली गयी। उन्होंने कहा कि अपने पूरे राजनीतिक जीवन में नेतन्याहू ने हमेशा खुद को एकमात्र ऐसे राजनेता के रूप में पेश किया है जो यहूदियों और इजराइल की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि इसमें फ़लस्तीनी राज्य की संभावना को स्वीकार करने से इंकार करना शामिल है, जिसे वह इज़राइल के लिए अस्तित्व का ख़तरा मानते हैं। यह तथ्य कि नेतन्याहू इस विशाल सुरक्षा विफलता के लिए जिम्मेदार हैं, उनकी राजनीतिक लोकप्रियता के मूल में चोट करता है। उन्होंने कहा कि इससे वह राजनीतिक रूप से कमजोर हो गए और सत्ता में बने रहने के लिए उन्हें अपने गठबंधन सहयोगियों पर निर्भर होना पड़ा।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यदि इनमें से कोई भी पार्टी गठबंधन छोड़ती है, तो उसके पास नेसेट में बहुमत नहीं रहेगा, जिसका अर्थ है कि नए चुनाव होंगे, जिसमें वर्तमान राजनीतिक माहौल को देखते हुए नेतन्याहू के हारने की संभावना है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक और न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने में असमर्थ नेतन्याहू ने स्वयं को उस न्याय प्रणाली की दया पर पाया जिसे वह कमजोर करना चाहते थे। उन्होंने कहा कि परिणामस्वरूप नेतन्याहू सत्ता में बने रहने के लिए जो भी आवश्यक है वह करने के लिए कृतसंकल्प हैं। उन्होंने कहा कि इजराइली सेना ने हाल ही में अक्टूबर 2023 के बाद से वेस्ट बैंक में सबसे बड़ी सैन्य घुसपैठ भी शुरू की है। गाजा में मारे गए 41,000 से अधिक फलस्तीनियों के अलावा वेस्ट बैंक में 650 से अधिक फलस्तीनी मारे गए हैं। उन्होंने कहा कि इजराइल का दावा है कि वह आतंकवाद से लड़ रहा है, इन कार्रवाइयों का अंतिम उद्देश्य गाजा में इजराइल की कार्रवाइयों के साथ-साथ, इजराइल के कब्जे और फलस्तीनी भूमि पर उसके कब्जे के खिलाफ किसी भी संगठित फलस्तीनी प्रतिरोध को कुचलना प्रतीत होता है। उन्होंने कहा कि यदि यह सफल रहा तो राष्ट्रवादियों का नदी से समुद्र तक यहूदी राज्य का सपना पहले से कहीं अधिक सच होने के निकट हो जाएगा।
प्रश्न-3. भारत तथा खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) की बैठक का क्या रणनीतिक महत्व है?
उत्तर- भारत और खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) ने दोनों पक्षों के बीच सहयोग बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा के दौरान स्वास्थ्य, व्यापार, सुरक्षा, ऊर्जा, कृषि एवं खाद्य सुरक्षा सहित विविध क्षेत्रों में विभिन्न गतिविधियां संचालित करने के लिए एक ‘‘संयुक्त कार्ययोजना’’ को मंजूरी दी है इसका सभी देशों के लिए काफी महत्व है। उन्होंने कहा कि एक सामूहिक इकाई के रूप में जीसीसी भारत के लिए काफी मायने रखती है और यह भारत का ‘‘विस्तारित’’ पड़ोस है। उन्होंने कहा कि करीब 90 लाख भारतीय खाड़ी देशों में काम करते हैं और रहते हैं, जो हमारे बीच एक जीवंत सेतु की तरह काम करते हैं। उन्होंने कहा कि खाड़ी देशों के साथ भारत का व्यापार न केवल मात्रा में बढ़ा है, बल्कि विविधता में भी बढ़ा है, जिसमें विभिन्न प्रकार की वस्तुएं और सेवाएं शामिल हैं, जो हमारी अर्थव्यवस्थाओं को गति प्रदान करती हैं और रोजगार सृजन करती हैं। उन्होंने कहा कि भारत-जीसीसी मुक्त व्यापार समझौते को शीघ्र पूरा करने की दिशा में भी इस बैठक में कदम उठाये गये हैं जिसके परिणाम आने वाले दिनों में देखने को मिलेंगे। उन्होंने कहा कि इस बैठक के दौरान व्यापार के साथ ही साझा हित के अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर भी चर्चा की गयी। उन्होंने कहा कि इस बैठक में भाग लेने गये भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत-जीसीसी मंत्रिस्तरीय बैठक के इतर कतर, सऊदी अरब, ओमान, कुवैत और बहरीन के अपने समकक्षों के साथ अलग-अलग द्विपक्षीय बैठकें कीं जिनका बहुत रणनीतिक महत्व है।
प्रश्न-4. सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने ‘जल-थल’ अभियानों के लिए जो संयुक्त सिद्धांत जारी किया है उसका क्या मतलब है?
उत्तर- प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए ‘‘जल-थल’’ अभियानों के लिए एक संयुक्त सिद्धांत जारी किया है। उन्होंने कहा कि ‘चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी’ (सीओएससी) की बैठक में जारी किया गया यह सिद्धांत ऐसे समय में आया है, जब सरकार महत्वाकांक्षी ‘थियेटराइजेशन’ परियोजना को लागू करने पर विचार कर रही है। उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण दस्तावेज साइबर क्षेत्र परिचालन के लिए संयुक्त सिद्धांत प्रस्तुत किये जाने के लगभग तीन महीने बाद जारी किया गया। इसका उद्देश्य साइबर क्षेत्र अभियानों के संचालन में सैन्य कमांडरों का मार्गदर्शन करना है। उन्होंने कहा कि इसके बारे में रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम में चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी (सीओएससी) की बैठक के दौरान जल-थल अभियानों के लिए संयुक्त सिद्धांत जारी किया।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यह सिद्धांत एक प्रमुख दस्तावेज है जो कमांडरों को वर्तमान समय के जटिल सैन्य वातावरण में जल-थल अभियानों के संचालन के लिए मार्गदर्शन प्रदान करेगा। उन्होंने कहा कि जल-थल क्षमता सशस्त्र बलों को युद्ध और शांति, दोनों के दौरान हिंद महासागर क्षेत्र में कई तरह के सैन्य अभियान संचालित करने की शक्ति प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि इसके बारे में रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि ये सैन्य अभियान बहु-क्षेत्रीय सैन्य परिचालनों का एक महत्वपूर्ण घटक हैं और सशस्त्र बलों के बीच सामंजस्य और एकीकरण के सबसे अच्छा उदाहरण हैं। उन्होंने कहा कि यह सामान्य रूप से सशस्त्र बलों की संयुक्तता और एकीकरण तथा विशेष रूप से जल-थल सैन्य अभियान पर समुचित ध्यान केंद्रित करता है।